निकाह करने का सुन्नत तरीका | Nikah Padhane Ka Sunnat Or Asaan Tarika

निकाह करने का सुन्नत तरीका | Nikah Padhane Ka Sunnat Or Asaan Tarika
(निकाह करने का सुन्नत तरीका-Nikah Padhane Ka Sunnat Or Asaan Tarika)

जरे नजर किताब (करीन-ए-जिन्दगी) मिल्लत के उन लोगो के लिये बेहद फायदेमन्द साबीत होगी जो शादीशुदा जिन्दगी से जुड़े है। खुसुशन वो नौजवान जो अपनी नाइल्मी और मजहब से दुरी के सबब गैर इन्सानी हरकते करके अल्लाह अजवजल और रसुले अकरम () की नारजगी मोल लेते है याद रखिये दुनिया का वोह वाहिद मजहब, मजहबे इस्लाम है जो ज़िन्दगी के हर मोड पर हमारी रहबरी करता हुआ नजर आता है।
 

पैदाइश से लेकर मौत तक, घर से लेकर बाजार तक, ईबादत से लेकर तिजारत तक, तन्हाइ से लेकर भीड़भाड़ तक गर्ज के किसी भी तअल्लुक से आप सवाल करे, इस्लाम हर एक सवाल का इत्मिनान बख्श जवाब देता नजर आएगा। हमारे मजहब ने हमे कभी किसी मकाम पर तन्हा नही छोड़ा। हमारे नबी () आखरी नबी है अब कयामत तक कोइ नबी नही आएगा। हमारे नबी () का लाया हुआ दीन व कानून भी आखरी कानून है कयामत तक कोई नया दीन व नया कानून नही आएगा इस्लिए मिल्लत के लोगो से अपिल है के वोह दुसरो कि नक्ल करने से बचे, नक्ल वोह करे जिसके पास अस्ल न हो। हम वोह खुश्किस्मत उम्मत है जिस को कयामत तक के लिए दुस्तरे ज़िन्दगी और जाबत-ए-हयात दे दिया गया है। ताकि हम कयामत तक किसी के मोहताज न रहे। 

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कुदरत ने हर नर के लिए मादा और हर मादा के लिए नर पैदा फरमा कर बहुत से जोड़े आलम में बनाए और हर एक के बदन का मशीन पर मुख्तलीफ पूर्जो को इस अंदाज के साथ सजाया के वोह हर एक की फितरत के मुताबिक एक दुसरे को फाइदा पहुचाने वाले और जरूरत को पूरा करने वाले है। 

अल्लाह रब्बुल इज्जत ने मर्द और औरत के अंदर एक दुसरे के जरिए सुकुन हाशिल करने की ख्वाहिश रखि है। चुन्नाचे मजहबे इस्लाम ने इस ख्वाहीश का एहतराम करते हुए हमे निकाह करने का तरीका बताया ताकी इंसान जाइज तरीको से सुकून हासिल करे इस जमाने मे अक्सर मर्द निकाह के बाद अपनी लाइल्मी और मजहब से दुरी की वजह से तरह तरह कि गलतिया करते है और नुकसान उठाते है इन नुकसानात से उसी वक्त बचा जा सकता है जब के इस के मुतअल्लिक सही इल्म हो। 

अफ्सोस इस जमाने में लोग किसि आलिमे दीन से या फिर किसी जानकार सख्स से मियां बीवी के खास तअल्लुकात के मुतअल्लिक पूछने या माअलूमात हासिल करने से कतराते है। हालांकि दीन की बाते और शरई मशाइल माअलूम करने मे कोई शर्म महशुस नहीं की जानी चाहिये थीं। हमारा रब अज्ज व जल्ल इरशाद फरमाता है 

तो ए लोगो इल्म वालो से पूछो अगर तुम्हे इल्म न हो" हमारे नबी ()इरशाद फरमाते है इल्मे दीन सिखना हर मर्द और औरत पर फर्ज है" अक्शर ये देखा गया है की लोग मियां-बिवी के दरमियान होने वालि खास चिजो के बारे में पूछने में शर्म महसुस करते है और इसे बेहुदापन और बेशर्म समझते है। यही वह शर्म की झिझक है जो गलतियों का सबब बनति है और फिर शिवाए नुकसान के कुछ हाथ नही आता, 


प्यारे दोस्तो, शरई रोशनी में अदब के दायरे में ऐसी बातो की माअलुमात हासिल करना और उसे बयान करना जरूरी है और इस मे किसी किस्म की शर्म व बेहुदापन नहीं। देखो हमारा परवरदीगार अज्ज व जल्ल क्या इर्शाद फरमाता है और अल्लाह हक फरमाने मे नही शर्माता हदीसों मे है के हुजुरे अकरम () के जाहीर जमाने मे औरते तक शादी शुदा ज़िन्दगी में आने वाले खाश मसाइल के बारे मे हुजुर () से सवाल पुछा करती थी। 

( निकाह )👇 

अल्लाह रब्बुल इज्ज्त इर्शाद फरमाता है तो निकाह में लाओ जो औरते तुम्हे खुश आए।" हमारे नबी () इर्शाद फरमाते है "निकाह मेरी सुन्नत है और इर्शाद फरमाते है "बंदे ने जब निकाह कर लिया तो आधा दीन मुकम्मल हो जाता है. अब बाकी आधे के लिए अल्लाह रब्बुल इज्जत से डरे।" 

 हजरत महल बिन सअद रदी अल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है के नबी ए अकरम  (ने इर्शाद फरमाया "निकाह करो चाहे महेर देने के लिए एक लोहे की अंगूठी ही हो। हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदी अल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है, सरकार  () ने इर्शाद फरमाया ए जवानो जो तुममे से औरतो के हुकुक अदा करने की ताकत रखता है तो वोह जरुर निकाह करे क्यों की यह निगाह को जुकाता और शर्मगाह कि हिफाजत करता है और जो इस कि ताकत न रखे तो वह रोजा रखे क्योंकी यह शकत (वासना) को कम करता है।" 

मला शहवत का गलबा (जवानी का जो ज्यादा है और डर है कि निकाह नहीं करेगा तो जिना बलात्कार हो जाएगा और बीवी का महेर व खर्चा वगैरा दे सकता है तो निकाह करना वाजिब है। मसुअला - यह यकीन है के निकाह न करेगा तो जिना हो जाएगा तो उस हालत में निकाह करना फर्ज है। मसूअला डर है के अगर निकाह किया तो बाद में बीवी का महेर व खर्चा वगैरा नहि दे सकेगा तो एसी हालत में निकाह करना मकसद है। 


मसूअला :- येह यकीन है के निकाह किया तो बाद में बीबी का महेरच वगैरा दे हि नहीं सकेगा तो ऐसी हालत में निकाह करना हराम है। 

(किन लोगो से निकाह जाइज नही )👇


दुनिया में इन्सान के वजूद को बाकी रखने के लिए कानूने ख़ुदा के मुताबीक दो गैर जिन्स (मर्द और औरता का आपस मे मिलना जरूरी है। लेकिन उस कानून के मुताबिक कुछ ऐसे भी इन्सान होते है जिन का जिन्सी तौर पर आपस में मिलना कानून के खिलाफ है। अल्लाह अज्जव जल्ल कुरआन में इरशाद फरमाता है हराम हुई तुम पर तुम्हारि माँए और बेटीया और बहने और फुफिया और खालाए और भतीजिया और भांजिया और तुम्हारी माँए जिन्होंने दुध पिलाया और दूध की बहने और औरतो की माँए।" तर्जुमा: कुरआन करीम की इस आयत से मालूम हुआ के माँ, बेटी, बहन, फुफी, खाला, भतीजी, भानजी, दादी, नानी, पोती, नवासी, सगी साँस से निकाह हराम है। मसुअला : माँ सगी हो या सौतेली बेटी सगी हो या सौतेलि, बहन सगी हो या सौतेलि इन सब से निकाह हराम है इसी तरह दादी, नानी, परदादी, परनानी, पोती, परपोती, नवासी, परनवासी बिच में चाहे कितनी भी पीढ़ियों का फास्ला हो इन सब से निकाह हराम है। 

मसुअला:- फुफी, फुफी की फुफी, खाला, खाला की खाला, भतीजी, भानजी, भतीजी की लड़की पोती नवासी और इस तरह भानजी कि लड़की पोति नवासी इन सब से भी निकाह हराम है। 

मसूजला:- जिना से पैदा हुए बेटी, उस बेटी की बेटी, उस की नवासी, पोती, इन सब से भी निकाह हराम है। हजरत अमरा बिन्त अब्दुर्रहमान व हजरत मौला अली रदी अल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है के सरकार ए मदीना () ने इरशाद फरमाया "रजाअत (दुध के रिश्तों से भी वही रिश्ते हराम हो जाते है, जो विलादत से हराम हो जाते है।" 
यानी किसि औरत का दुध बचपने के आलम मे पीया तो उस औरत से माँ का रिश्ता हो जाता है। अब उसकी बेटी, बहन से निकाह हराम है, यानी जिस तरह सगी माँ के रिश्तेदारो से निकाह हराम है उसी तरह उस दुध पिलाने वाली औरत के रिश्तेदारो से भी निकाह हराम है। 


मस्अला:- निकाह हराम होने के लिए ढाइ बरस के जमाना है। कोई औरत किसी बच्चे को ढाइ बरस की उमर के अंदर अगर दुध पिलाएगी तो निकाह हराम होना साबीत हो जायेगा और अगर ढाइ बरस की उमर के बाद दुध पिलाया तो निकाह हराम नहीं अगरचे ढाइ बरस की उमर के बाद बच्चे को दूध पिलाना हराम है। 

हदीस:- हज़रत अबु हुरैरा रदी अल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है के रसुले अकरम सरकार ए मदीना () ने इरशाद फरमाया कोई शख्स अपनी बिवी के साथ उसकी भतीजी या भानजी से निकाह न करे बिवी की बहन चाहे सगी हो या रजाई, या बिवी की खाला, फुफी सगी हो या रजाई इन सब से निकाह करना हराम है। अगर बिवी को तलाक दे दी तो जब तक इद्द्त न गुजरे उस्की बहन, फुफी, खाला से निकाह नही कर सकता। 

(काफिर व मुशरीक से निकाह )👇


आयत :- अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इर्शाद फरमाता है "और मुशरिको के निकाह मे न दो जब तक वोह ईमान न लाए।" 

मस्अला :- मुसलमान औरत का निकाह मुसलमान मर्द के सिवाय किसी भी मजहब वाले से नही हो सकता। 

मस्अला :- जिस मे मर्द व औरत दोनो की अलामत पाइ जाए और येह साबित न हो के वोह मर्द है या औरत तो उस से न मर्द का निकाह हो सकता है न औरत का, अगर किया तो बातिल है । 

(निकाह कहा करे )👇


हदीस :- उम्मुलमो अमेनीन हजरते आएशा सिद्दिका, हज़रत अनस बिन मालिक, हजरत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रदिअल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है के सरकार ए मदीना (सल्लाहो अलयही वसल्लम) ने इरशाद फरमाया है "अपन शादि के लिए अच्छी जगह तलाश करो, अपनी बिरादरी में शादी हो, और बिरादरी से शादी कर लाओ कि औरते अपने ही कुन्चे के मुशाबा जन्ती है। 

इस हदीसे पाक से पता चलता है के अपनी ही बिरादरी मे निकाह करना बेहतर है अपनी बिरादरी मे ही निकाह करने के बहोत से फायदे है जैसे के औलाद अपनी बिरादरि के चहेरे से मिल्ति जुल्ति पैदा होगी जिस कि वजह से दसरे लोग देखते हि पहचान के येह सैयद है पठान है मेमन है वगैरा दुसरा येह के बिरादरी की गरीब लडकियो कि जल्द से जल्द शादी होजायेगी और लड़की अपनी बिरादरी की होने से वोह बिरादरी के तौर तरीके, घर के रहन सहन के बारे मे पहेले से ही जानती है लिहाजा घर मे झगडे और न इत्तेफकिया नहि होंगी। 


हदीस :- हजरत अनस रदिअल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है के सरकार ए मदीना () ने इरशाद फरमाया है "अच्छी नस्ल मे शादी करो (रंगे खुफया अपना काम करती है)" 

हदीस :- हजरत अनस रदिअल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है के सरकार ए मदीना ()ने इरशाद फरमाया है घोडे की हरयाली से बचो, बुरी नस्ल मे खूबशुरत औरत से  लड़की का खूबसूरत होना ही काफी नही बल्की खूबी तो येह है के लडकी पर्दादार हो, नमाज रोजे कि पाबंद हो, उसका खानदान, रहेन सहेन, तहजीब व इखलाक मे और खास तौर पर मजहबी अकाएद मे बहेतर हो। अगर आप ने येह सब चिजों को देखकर निकाह किया तो आप कि दुनिया व आखीरत काम्याब है और आगे ऐसी लड़कि के जरीए फरमाबरदार और बेहतर नस्ल जन्म लेति है 

हदीस :- हजरत अबु हुरैरा व हजरत जाबीर रदिअल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है के सरकार ए मदीना () ने इरशाद फरमाया है "औरत से चार चिजो कि वजह से निकाह किया जाता है, उसके माल, उस्के खांदान, उस्के हुस्न व जमाल, और उसके दीनदार होने कि वजह से। लेकिन तु दीनदार औरत को हसिल कर । लिहाजा इस हदीस से साबीत हुआ के दीनदार औरत से निकाह करना सब से बेहतर है। दीनदार औरत शौहर को मददगार होति है और थौड़ी रोजी पर कनाअत कर लेती है। उसके बर्खिलाफ दीनदार से दुर औरते गुनाह और मुसीबत मे मुबतला कर देती है। फतावा एरजवीया मे है दीनदार लोगों मे शादी करे कि बच्चे पर नाना मामू की आदतो व हरकतों का भी असर पड़ता है।" 

(मंग्नि या निकाह का पैगाम )👇


आयत अल्लाह रबूल इज्जत इरशाद फरमाता है और तुम पर गुनाह नही इस बात मे जो पर्दा रख कर तुम औरतो को निकाह का पय्गाम दो। जब किसि से रिश्ते का इरादा हो तो उसे शादी क पैगाम या मंगनी करने से पहले ये जरूर देख ले के उसको पहेले से किसी ने शादी का पैगाम तो नहि दिया है। अगर बात चल रही है तो उसे हरगिज रिश्ते का पैगाम न दे इसे इस्लामी शरिअत मे सख्त न पसंद किया गया है। 

हदीस :- हजरत अबू हुरैरा व हजरत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रदिअल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है के सरकार ए मदीना () ने इरशाद फरमाया है। कोइ आदमी अपने भाई के पैगाम पर निकाह का पैगाम न दे यहां तक के पहला खुद मन्गनी का इरादा तर्क दे या उसे पैगाम भेजने की इजाजत दे 

(निकाह से पहेले औरत देखना )👇


किसी लडकी या औरत को किसी गैर मर्द को उस वकत दिखाने मे कोई हर्ज नही जब वोह उस से शादी का इरादा रखता हो या उस ने शादी का पैगाम भेजा हो। लेकिन उस मर्द के दुसरे मर्द रिश्तेदारों या दोस्त अहबाब को नही दिखाना चाहिये के वह सब गैर महरम है जिन से पर्दा करना जरुरी है लिहाजा सिर्फ लडके य मर्द और उसके घर कि औरतें हि लड़की देखे निकाह से पहले औरत को देखना जाईज है लेकिन इस बात का जरूर खयाल रखें कि लडके को लड़की इस तरह से दिखाए के लड़की को इस बात कि भनक भी न लगे के लड़का उसे देख रहा है यानि खुल्लम खुल्ला सामने न लाए। अगर एह्तियात से दिखाया जाएगा तो इस में कोई हर्ज़ नही बल्कि बेहतर है बाद मे गलतफहमी नही होती। 

(लड़की की रजामंदी )👇


शरीअते इस्लाम में जहां कई मामलों मे औरत कि रज़ामंदी जरूरी समझी जाती है वही शादी के लिए लडकी से उस की रज़ामंदी जरूरी है 


हदीस :- हजरत अबु हुरैरा व हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदिअल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है के सरकार ए मदीना () ने इरशाद फरमाया है। कूँवारी का निकाह न किया जाए जब तक उस की रज़ामंदी न हासील कर ली जाए और उस का चुप रहना उस की रज़ामंदी है, और न निकाह किया जाए बेवाह का जब तक उस से इजाजत न ली जाए । 

(मेहर )👇


आपका और हमारा यह मुशाहेदा है के हम मे आज बड़ी तादाद में ऐसे लोग है जो शादी तो कर लेते है महेर भी बांधते है लेकिन उन्हे येह पता ही नही के महेर कितने किसम का होता है और उनका निकाह किस किस्म कि महेर पर तय हुआ था। लिहाजा हमे येह सब जान लेना जरूरि है। 

(महेर तीन किस्म का होता है) मुअज्जल महेरे मुअज्जल येह है के रुख्सती से पहेले महेर देना करार पाया हो। (चाहे दिया कभी भी जाएँ) मुवज्जल महेरे मुवज्जल येह है के महेर कि रकम देने के लिए कोइ वक्त मुकर्रर कर दिया जाएँ मुतलक  महेरे मुतलक येह है कि जिस मे कुछ तय न किया जाएँ। इन तमाम महेर की किस्मो मे महेरे "मुअज्जल रखना ज्यादा अफजल है।

मस्अला :- महेरे मुअज्जल वसुल करने के लिए अगर औरत चाहे तो अपने शोहर को सोहबत करने से रोक सकती है और मर्द को जाईज नही की औरत को मजबूर करे या उसके साथ किसी तरह की जबर्दस्ती करे। येह हक़ औरत को उस वक्त तक हाशिल है जब तक वह महेर वसुल न कर ले 

(अगर इस दौरान औरत अपनी मरजी से चाहे तो सोहबत कर सकती है) इस दौरान भि मर्द अपनी बिवि का नान नफ्फा (खाना पिना कपडा खर्चा वगैरा) बंद नहि कर सकता। जब मर्द औरत को उस का महेर दे दे तो औरत को अपने शौहर को सोहबत करने से रोकना जाइज नहीं मस्अला इसी तरह अगर महेरे मुव्वजल था और वोह मुद्दत खत्म हो गयी तो औरत शौहर को सोहबत करने से रोक सकती है। मस्अला औरत को महेर माफ कर देने के लिए मजबूर करना जाइज नही


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5 टिप्पणियाँ

  1. मेरा नाम सरवर खान है में मुस्लिम हु ,
    मैं एक हिंदू लड़की को जनता था 13 साल से ,
    4महीने पहले लड़की के मां बाप ने कही और सादी कर दी लड़की की ,
    पर लड़का जिससे सादी हुई है वो नशा का आदि है वोहा लड़की खुश नहीं है और वो तलाक़ चाहती है ,
    और मुझसे सादी करना चाहती है
    मैं अभी सादी नहीं किया हु
    किया ये इस्लाम में सादी करना सही होगा ?

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    1. Shadi karna sahi h par ek to vo musalman ban jaye or dusri baat BJP sarkar se apni jaan bacha lena.

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    2. Mere saath bhee yahi seen hai 😂

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  2. Apne Majhab Mein he Shaadi karna Nehtar hai Aaj kal ka mahaul to aap dekh he Rahe ho

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  3. miya biwi raaji to bhad main jaya duniya dari.

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अस्सलामू अलैकुम