सूदखोर का अंजाम | sood khor ka anjam | in hindi

सूदखोर का अंजाम | sood khor ka anjam | in hindi

बहुत जमाने पहले की बात है जब हिंदुस्तान पाकिस्तान एक ही था 


पंजाब के एक पुराने गांव में अशरफ दादा का घराना आबाद था अशरफ दादा उस खानदान के बुजुर्ग थे और देखा जाए तो पड़ोस के सभी घरों (islamic storys in hindi) में वह सबसे ज्यादा बुजुर्ग थे हर कोई उनकी बहुत इज्जत करता था अशरफ दादा को उनके पोते और पोतियो के देखा देखी मोहल्ले के सभी बच्चे उन्हें अशरफ दादा के नाम से पुकारते थे 


जहां पर उनका घर था उसके आसपास में तकरीबन 20 25 मकान थे उनके सामने खेत उन खेतों के पास में 3 4 पेड़ थे क्योंकि यह पेड़ आस-पास में ही थे इसीलिए उनका साया बहुत घना और सुकून भरा था बस सुबह होते ही अशरफ दादा उन्हीं पेड़ों के नीचे चारपाई बिछा लिया करते थे और दिन भर उसी चारपाई पर बैठकर हुक्का पीते रहते दोपहर के वक्त उनकी बहूवें 


वहीं पर उनके लिए खाना ले आती मगरिब की नमाज के बाद उनको उनके पोते घर की तरफ ले जाते दादा के 4 बेटे थे 2 की शादी उनकी बेगम ने अपने हाथों से की थी फिर उनकी नेक बेगम का इंतकाल हो गया और बाकी दोनों बेटों की शादियां उनकी दोनों बहुवों ने देखभाल कर करवाई थीअलबत्ता अशरफ दादा की कोई बेटी नहीं थी 


लिहाजा उनकी बहुएं उनका सारा काम करती थी और अशरफ दादा सारा (islamic storys in hindi) दिन घर से दूर पेड़ के नीचे बैठे रहते आते जाते अशरफ दादा को लोग सलाम करते उनका हाल-चाल पूछते और फिर चले जाते लेकिन अशरफ दादा की इस कदर शोहरत की वजह उनकी बुजुरगी नहीं थी बल्कि उनका कारोबार था जो की सालों से चलता आ रहा था 


अशरफ दादा गांव वालों का चलता फिरता बैंक थे किसी को कोई जरूरत आन पड़ती या कोई संगीन बीमारी आन पड़ती या किसी की बेटी या बेटे की शादी आन पड़ती या किसी को किसी भी तरह की परेशानी होती या हर वह काम जिसमें गांव वालों को पैसों की जरूरत होती तो वह बेझिझक अशरफ दादा से कर्ज ले लिया करते और अशरफ दादा उनको फौरन कर्ज दे दिया करते 


बल्कि अशरफ दादा उनसे बहुत मोहब्बत से पेश आते और भला आते भी क्यों ना अक्सर दादा उस कर्ज के बदले अपनी मर्जी से सूद लगाते और यही कारोबार वह सालों से करते हुए आ रहे थे उनके खटिया पर रखें तकिए के नीचे उधार की रकम खाते सूद की तफ़सीलात का एक रजिस्टर रखा हुआ था जिसे वह एक पल के लिए भी खुद से अलग नहीं होने देते 


अगर कभी बारिश होने लगती तो अपने पोतियों को इस कदर शोर मचा कर बुलाते जैसे कोई तूफान आ गया होमगर इस शोर-शराबे का बस इतना मकसद होता के उनका रजिस्टर गिला ना हो जाए दादा अपनी रकम सूद समेत वापिस लेने में खूब होशियार थे उन्हें यह कारोबार करते हुए 40 से ज्यादा समय हो गया था कोई भी उनसे रकम लेकर भाग नहीं पाया था 


अशरफ दादा के उसी लालच और हवस मैं उनकी जिंदगी के दिन गुजर रहे थे एक दिन गांव के स्कूल के मास्टर का अशरफ दादा के सामने से गुज़र हुआ ब्लूटूथ सलाम उन्हें रोक कर सलाम दुआ करने लगे दादा ने उनको बुलाकर कुर्सी पर बैठने को कहा और साथ में उनकी तरफ हुक्का भी कर दिया मास्टर साहब बोले मैं जुम्मे की नमाज पढ़कर आ रहा था सोचा के आपसे भी मुलाकात कर लूं 


आपने तो कभी गलती से भी मस्जिद का रुख नहीं किया दादा साहब यह सुनकर भोले मास्टर साहब मुझे काम से फुर्सत नहीं मिलती कभी किसी की रकम देनी होती है कभी किसी से रकम लेनी होती है कभी किसी का हिसाब लिखना पड़ता है नमाज के लिए मेरे पास वक्त ही कहां हैयह सुनकर तो जैसे मास्टर साहब को आग ही लग गई कहने लगे दादा सूद खाना हराम है 


अगर आप बिना सूद के लोगों की मदद करना चाहे उधार ही सही और मुद्दत पर वापस लेने तो आपको सवाब भी मिलेगा और लोगों (islamic storys in hindi) की भी मदद हो जाएगी लेकिन दादा को कहां नेकी की बात सुननी थी दादा बोले मियां कहां पर हराम है किसी को अगर वक्त पर उसकी रकम मुहैया करते हैं तो इसमें क्या हराम है वैसे भी आजकल कौन किसी को उधार रकम देता है


लेकिन मैं कभी किसी को इनकार नहीं करता और अगर मैं उसके बदले में कुछ पैसे वसूल करता हूं तो वह तो मेरी मेहनत है ना कि हराम दादा को आज तक कभी कोई अल्लाह का खौफ याद नहीं दिला सका तो भला मास्टर जी की कहां चलनी थी मास्टर जी कुछ देर गुस्से में दादा के पास बैठे रहे फिर कुछ देर बाद दादा से रुखसत चाही अगले रोज उनकी बड़ी बहू उनके लिए खाना लेकर आई 


तो कहने लगी के अब्बा जी आज गांव के मास्टर साहब की बीवी आई हुई थीआपके लिए कुछ पैगाम देकर गई है दादा ने झट से पूछा क्या कहती है वो  तो बहू ने बताया के वह कह रही थी के सूद लेना गुनाह है अगर दादा हमें बगैर सूद के कुछ रकम उधार दे दे ईद के बाद मेरी दो बेटियों की शादी है बकरा ईद के बाद मैं वह रकम लोटा दूंगी 


दादा को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया और वह बड़बड़ाने लगे हमारे पास कोई मुफ्त के पैसे नहीं जो जिसे चाहे दे दे कल मास्टर साहब भी आए थे मेरे पास उनसे कहो के जो तरीका हैउसी तरीके से मैं उधार की रकम दूंगा यह साबान का आखिरी दिन था और फिर रमजान का महीना शुरू हो गया अशरफ दादा रोजा भी नहीं रखते अलबत्ता इफ्तार करने में उनका कोई जवाब ना था 


लेकिन अभी 15 रोज ही गुजरे थे के दादा के गुर्दों में तकलीफ शुरू हो गई जिसकी वजह से वह काफी तकलीफ में चले गए उन्हें सारी सारी रात तकलीफ के मारे गुजर जाती चारों बेटे बाप की बीमारी से बेहद परेशान थे आखिर वह घर के बड़े बुजुर्ग थेउनकी जरा सी आवाज पर घर के सारे लोग कतार में खड़े हो जाते हैं लेकिन दादा तो रोज ब रोज कमजोर होते जा रहे थे 


कमर बिल्कुल चारपाई से लग गई दादा की चारपाई अब दिन रात घर में लगने लगा और दादा भी उसी चारपाई पर पड़े रहते अब तो उनमें बैठने की भी ताकत नहीं रही 1 दिन दादा सुबह से ही किसी संगीन सोच मैं गुम थे शाम को जब चारों बेटे घर लौटे तो उन्हें अपने पास बुला लिया और उन्हें कुछ देर समझाते रहे फिर उनके बेटो ने उनको चारपाई पर से उन्हें उठाकर बिठा दिया 


और जहां चारपाई रखी थी उसके चारों पाए के नीचे मिट्टी खोदने लगे कच्चा फर्स था इसलिए वह हाथों से मिट्टी खो देते रहे कुछ देर के बाद कमरे में चार गड्ढे खोद दिए और चारों पाए के नीचे कम से कम 3 फुट गड्ढा कर दिया उसमें से 4 पोटलिया निकली जब बेटो ने उन्हें खोला तो उसमें से सोने और चांदी के बेशुमार सिक्के निकले बेटों की आंखें लालच से चमकने लगी 


वह जल्दी से सारा माल कमरे में हिफाजत से रख आए अब तो यह रोज का मामूल बन गया बाप रोजाना घर के किसी कोने की निशानदेही करता और बेटे उस जगह पर खोज के दबा हुआ खजाना निकाल लेते इसी तरह ईद भी आ गईवह उनकी जिंदगी की सबसे हसीन ईद थी चारों बेटू की तो जिंदगी चमक गई लेकिन ईद के 2 4 दिन के बाद अचानक दादा की तबीयत ज्यादा खराब हो 


गई और अब तो उनसे बोला भी नहीं जा रहा था उनकी उनकी जैसे आंखों में ही जान अटक गई बेटों से कुछ कहना चाहते थे लेकिन कुछ कह नहीं पा रहे थे बेटे बाप का इशारा समझ रहे थे इसीलिए वह बाप को चारपाई समेत उठाकर घर में घुमा रहे थे बाप कब किसी कोने का इशारा करें तो वह उस जगह को खोदकर वहां से दबा हुआ खजाना निकाल सके 


जैसे ही वह गुसल खाने की तरफ से गुजरे दादा को तो जैसे मौत के फरिश्ते नजर आने लगे हो उनकी आंखें जैसे बाहर की तरफ निकलनी शुरू हो गई अचानक यह सब कुछ छोटे बेटे ने देख लिया तो फिर जोर से भोला के बाबा का इशारा गुसल खाने की तरफ है सबने चारपाई वही छोड़ दी और लगे गुसल खाने की तोड़फोड़ करने 


और पीछे की दीवार के नीचे अब तक का सबसे बड़ा खजाना मिल गया सारा का सारा घर खजाने की तक्सीम में लग गया उधर उसी दौरान दादा की रूहू कब्ज हो गई अगले रोज अशरफ दादा का जनाजा ले जाया गया दफनाने के 2 दिन बाद किसी शख्स ने आकर बताया केदादा की कब्र में बड़ा सा सुराख हो गया है और उसमें से काले रंग का बड़ा सा सांप मुंह निकालें देख रहा है 


यह खबर पूरे(sood khor ka anjam in hindi) गांव में जंगल की आग की तरह फैल गई उनके खानदान से लेकर पूरे गांव के लोगों ने इस वाक्य को अपनी आंखों से देखा वाकई वहां पर एक बहुत बड़ा सांप मौजूद था जोकि दादा की कब्र में से एक सुराख में से अपना मुंह निकालता और फिर अंदर चला जाता यह सांप अल्लाह का आजा था अशरफ दादा के लिए 


जोकि उन्हें सारी जिंदगी सूदखोरी की वजह से मिला था वह अपनी दौलत कब्र तक साथ ना ले जा सके और उनकी औलाद उसी दौलत की बंटवारे की वजह से दादा की आखिरी वक्त में उनके साथ नहीं थे अशरफ दादा के इबरत्नाक अंजाम की मोलवी साहब हर जुम्मे को लोगों को जुम्मे के खुतबे में सुनाते और उन्हें सूदखोरी जैसी लालच से दूर रहने को कहते 

सबक

मोहतरम अजीज दोस्तों सूद हराम है और इस्लाम में उसकी मनाई है और सूद खाने वाले हो का अंजाम बहुत बुरा होता है इसलिए अजीज दोस्तों अपने माल को पाख कीजिए सूद से पचिये और अपने खानदान को बचाइए


एक कफन चोर का वाकया

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